अमरावती, प्रतिनिधी: क्या अमरावती अब पहले जैसा शांत शहर नहीं रहा? बढ़ती लोकसंख्या के साथ ही यहां अब गुंडागर्दी, अवैध व्यापार, अपराध और हफ्तावसूली की घटनाएं भी तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं। रात होते ही कई होटल्स और ढाबों में देर रात तक अवैध गतिविधियां खुलेआम चल रही हैं, लेकिन पुलिस आंख मूंदे बैठी है।
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"Is our city unsafe now?" There is fear and anger among the public due to increasing crime, hooliganism and illegal businesses in Amravati |
अपराध की रफ्तार तेज, कार्रवाई शून्य
हर दिन शहर में हो रही छेड़छाड़, लूट, झगड़े, अवैध वसूली और जलसाज़ी की घटनाएं इस ओर इशारा कर रही हैं कि अमरावती का सामाजिक ताना-बाना बिखरता जा रहा है। महिलाओं की सुरक्षा अब सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है। कई इलाकों में महिलाएं शाम ढलते ही घरों से बाहर निकलने से कतराने लगी हैं।
कौन है जिम्मेदार?
- आख़िर इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार कौन है?
- पुलिस आयुक्त की भूमिका सवालों के घेरे में है।
- क्या केवल ट्रैफिक चालान और VIP सुरक्षा तक ही पुलिस का काम सीमित रह गया है?
- जिल्हाधिकारी की ओर से कोई ठोस जन-हितैषी योजना नज़र नहीं आती।
- वहीं, विधायक और समाजसेवकों की सक्रियता केवल चुनावी मौसम तक सीमित दिखाई देती है।
हफ्तावसूली बना 'नया सिस्टम'
शहर के व्यापारियों का दावा है कि कई इलाकों में पुलिस द्वारा खुलेआम हफ्तावसूली की जा रही है। अवैध धंधों को रोकने की बजाय उन्हें "प्रोटेक्शन" दिया जा रहा है।
जनता पूछ रही है सवाल
“कब होगा अमरावती अपराध मुक्त?”
“क्या केवल आम जनता को ही डर में जीना है?”
“कब जागेगा प्रशासन?”
निष्कर्ष:
अब वक्त है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि और समाजसेवी मिलकर ईमानदारी से इस बिगड़ती स्थिति को संभालें। अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब जनता सड़कों पर उतर कर अपने हक़ के लिए संघर्ष करेगी।
🗣️ (संपादकीय टिप्पणी)
"अमरावती एक ऐतिहासिक शहर है, पर आज यहां भय का माहौल है। अब जिम्मेदारी लेने का समय है — प्रशासन के लिए भी, और समाज के लिए भी।"
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